Tuesday, May 9, 2023

प्रदेश में 11वी, 12वी के छात्रों के जरूरी प्रमाण पत्र स्कूल में ही बनेंगे

सभी इंटर कॉलेजों में अपणों स्कूल, अपणू प्रमाण योजना का शासनादेश

प्रदेष में अब 11वी, 12वी के छात्र छात्राओं के स्थायी  निवास, जाति प्रमाण पत्र, मूल निवास प्रमाण पत्र, आय प्रमाण पत्र आदि स्कूल में ही बनेगें। इसके लिये धामी सरकार ने ‘अपणो स्कूल, अपणू  प्रमाण‘ योजना लांच की है। शासन द्वारा इसका शासनादेश जारी कर दिया।

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सभी जिलाधिकारियो को दिषा निर्देष जारी कर दिये गये है कहा है कि आवष्यक प्रमाणपत्र बनवाने और इन्हें प्राप्त करने में आने वाली कठिनाइयों को दूर करने के दृष्टि यह योजना ष्षुरू की गई है। इसके तहत 11वी, 12वी के छात्र छात्राओं के सभी आवष्यक प्रमाणपत्र स्कूल स्तर पर ही उपलब्ध कराए जाएंगे। खास बात यह है कि प्रमाण पत्र बनाने वाले सभी अधिकारी और कॉमन सर्विस सेंटर की टीम खुद स्कूल पहुचकर जरूरी औपचारिकताए पूरी करेगी। 

ये काम करेगी जिला स्तरीय समिति-

1. जिला स्तर पर 11वी, 12वी में पढ रहे छात्रों की संख्या का आंकलन करेगें।

2. तहसील स्तर पर उपजिलाधिकारी की अध्यक्षता में भ्रमण करने वाली टीमों ‘‘ पटवारी, लेखपाल, कानूनगो, और सीएससी के डाटा एंटी आपरेटर का तिथिवार रोस्टर तैयार करना।

3. जिला स्तर पर योजना की साप्ताहिक सुनवाई होगी और निगरानी की जाएगी।

4. निवास स्थान, चरित्र, आय, पर्वतीय प्रमाणपत्र व अन्य प्रमाण पत्र निर्गत करने की प्रक्रिया के लिए समयसीमा निर्धारित करते हुए कार्ययोजना बनाना

ये काम करेगी तहसील स्तर की समिति-

5. तैयार रोस्टर की सूचना से सम्बन्धित विद्यालयों को अवगत कराते हुए प्रचार प्रसार करना।

6. तहसील स्तर पर रोजाना षिकायतो की सुनवाइ्र और निगरानी।

7. तहसील स्तर की समिति का मुख्य काम प्रमाणपत्रों के लिए आवष्यक दस्तावेजों की सूचना प्रधानाचार्यो, छात्रों अभिभावकों व स्थानीय जनप्रतिनिधियों को उपलब्ध कराना भी होगा।


Friday, February 4, 2022

उत्तराखंड में चाय की खेती का इतिहास और इससे जुडे महत्वपूर्ण तथ्य

 नमस्कार दोस्तों आज में आपको इस पोस्ट के माध्यम से उत्तराखंड में चाय की खेती कब और कहां से शुरू हुई इसके बारे में विस्तार से बताने वाला हूं। यदि आप उत्तराखंड समूह ग की तैयारी कर रहे है। और चाय के शौकीन भी है तो इस पोस्ट को अन्त तक जरूर पढिए।

>     1835 में जब अंग्रेजों ने कोलकाता से चाय के 2000 पौधो की खेप उत्तराखंड भेजी तो उन्हे भी विश्वास नही था कि धीरे धीरे यहां के बडे क्षेत्र में चाय की खेती पसर जाएगी। वर्ष 1838 में पहली बार जब यहां उत्पादित चाय कोलकाता भेजी गई तो कोलकाता चैंबर्स ऑफ कॉमर्स ने इसे हर मानकों पर खरा पाया। धीरे धीरे देहरादून, कौसानी, मल्ला कत्यूर समेत अनेक स्थानें पर चाय की खेती होने लगी।

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उत्तराखंड में चाय कमेटी कब बनी

>     वानस्पतिक उद्यान सहारनपुर के अधीक्षक डॉ. रोयले ने उत्तराखंड में चाय की खेती हो सकने से पूर्णत सहमत थे। सन 1827 में उन्होने एक रिपोर्ट ईस्ट इंण्डिया कम्पनी को भेजी, 1831 में जब लार्ड विलियम बैटिंक सहारनपुर आया तो उसने भी इस क्षेत्र में चाय उद्योग के विकास हेतु सुझाव दिया बैटिक ने सन 1834 में एक चाय कमेंटी बनी।

>     बॉटनीकल गार्डन सहारनपुर के सुपरइन्टैन्डेंट डॉ फॉकनर और बिल्किवार्थ ने इन जगहों का सर्वेक्षण किया सन् 1835 में दिसम्बर के अन्तिम माह में कलकत्ता से दो हजार पौधों की पहली खेप कुमाउ पहुची थीं। जिसने अल्मोंडा के पास लक्ष्मेश्वर तथा भीमताल के पास भरतपुर में चाय की नर्ससी स्थापित की गई सन 1835 में टिहरी गढवाल के कोठ नामक स्थान पर भी चाय की खेती प्रारंभ की गई।

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कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुः

उत्तराखंड में चाय विकास परियोजना - उत्तर प्रदेश शासनकाल में उत्तराखंड में चाय विकास परियोजना वर्ष 1993-94 में शुरू हुई।

अल्मोडा में चाय विकास बोर्ड की स्थापना - उत्तर प्रदेश शासनकाल में 1996 में चाय विकास बोर्ड की स्थापना हुई। बोर्ड ने चाय की खेती के लिए उपयुक्त पर्वतीय क्षेत्र में चाय उत्पादन की योजना तैयार की।

उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड की स्थापना - 12 फरवरी 2004।

>     सर्वप्रथम 1824 में चाय की खेती को कुमांउ में ब्रिटिश लेखक बिशप हेबर के द्वारा शुरू किया गया था।

>     1835-36 में लक्ष्मेंश्वर, अल्मोडा में चाय का पहला बागान डॉ फॉल्कनर के द्वारा लगाया था।

>     सन् 1835 में टिहरी गढवाल में चाय की कृषि प्रारंभ की गई थी।

>     मेजर कार्बेट के द्वारा 1841 में हवालबाग, अल्मोडा में चाय का बगीचा स्थापित किया गया था।

>     1843 में गंडोलिया पौडी गढवाल में चाय की  फैक्टी को कैप्टन हडलस्टन के द्वारा स्थापित किया गया था। जो गढवाल में स्थापित होने वाली पहली फैक्टरी थी। इस समय कुमांउ कमीश्नर जार्ज टॉमस लुशिगटन थे।

>     गंडोलिया पौडी गढवाल में डी.ए.चौफिन नामक एक चीनी चाय का काश्तकार के द्वारा सरकारी चाय फैक्टरी की स्थापना की गई, 1844 में देहरादून के पास कौलागढ में सरकारी बागान की शुरूआत डॉ. जेमिसन के नेतृत्व में हुई थी।

>     जॉन हेलिट बैटन के शासनकाल मे 1848 में मिस्टर फॉरचून को चाय की खेती सीखने के लिये चीन भेजा गया था।

>     सन 1850 में ईस्ट इंडिया के आमत्रण पर एसाई वांग एक चीनी चाय विशेषज्ञ गढवाल आये थे।

उत्तराखंड के प्रमुख बागान :

1. न्यूटन का बागान, मिस्टर मुलियन का बागान - भवाली में

2. मिस्टर जोंन्स का बागान - भीमताल में

3. मिस्टर डोरियाज का बागान - रामगढ में

4. जनरल व्हीलर का बागान - घोडाखाल में

5. डॉक्टर फॅाकनर का बागान - अल्मोडा में

6 मेजर कार्बेट का बागान - अल्मोडा में

7. डॉक्टर जेमिसन का बागान - देहरादून में

8. फेड्रिक विल्सन का, पहाडी विल्सन का बागान - उत्तरकाशी में

Thursday, February 3, 2022

Holi 2022 Date:इस बार होली पर बन रहा है विशेष योग

होली भारत के सबसे प्रसिद्ध त्योहारों में से एक है जिसका बेसब्री से इंतजार किया जाता है। यह रंगों, भाईचारे, शांति और समृद्धि का उत्सव है, ब्रज में तो होली का पर्व 40 दिनों तक मनाया जाता है

Holi 2022 is on March 18, Friday 

होली पूरी दुनिया में हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला एक धार्मिक त्योहार है। दिवाली के बाद हिंदू कैलेंडर पर होली को दूसरा सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। होली को रंगों के त्योहार के रूप में भी जाना जाता है
होली पर सर्दी के मौसम के समापन के संकेत मिलते हैं। हिंदू कैलेंडर के अनुसार,होली फाल्गुन माह की अंतिम पूर्णिमा या पूर्णिमा को मनाई जाती है। यह अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार फरवरी-मार्च के महीने में आता है।

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होली पर बन रहा है शुभ योग
पंचांग के अनुसार होली का पर्व 29 मार्च सोमवार को फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाएगा. इस दिन ध्रुव योग निर्माण हो रहा है और चंद्रमा कन्या राशि में गोचर कर रहा होगा. अन्य ग्रहों की बात करें तो मकर राशि में शनि और गुरू विराजमान रहेंगे. शुक्र और सूर्य मीन राशि में रहेंगे. वहीं मंगल और राहु वृषभ राशि, बुध कुंभ राशि और मोक्ष के कारण केतु वृश्चिक राशि में विराजमान रहेंगे.

होली की पौराणिक कथा
  • हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, राक्षस राजा हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका को अमर होने का आशीर्वाद दिया गया था और ब्रह्मांड में कोई भी उसे मार नहीं सकता था।
  • उनका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था और क्रोध से हिरण्यकश्यप ने उसके पुत्र को मारने की कोशिश की लेकिन असफल रहा। अंत में, उसने अपनी बहन, होलिका के अधीन बचाव किया। उन्होंने अपने पुत्र प्रह्लाद को होलिका की गोद में आग पर बैठने के लिए कहा।
  • चमत्कारिक रूप से, प्रह्लाद को विष्णु ने बचा लिया, जबकि होलिका राख में बदल गई थी। इस प्रकार, होली 'बुरे' के ऊपर 'अच्छाई' का उत्सव है।
  • कई किस्से हैं जो होली के दौरान कृष्ण और राधा के बीच मथुरा और वृंदावन के शहरों में हुई विभिन्न 'रास-लीलाओं' के बारे में बताते हैं।
  • ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव ने प्रेम के देवता कामदेव का विनाश किया था।

होली के अन्य नाम

फगवा (असम में)
रंगों का त्योहार (अंग्रेजी में)
वसन्त उतसव
दुलहंडी
गोवा में सिग्मो
महाराष्ट्र में शिमगा
डोलजात्रा (बंगाली / उड़िया में)

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होली की रस्में

  • इस दिन, लोग रंगों और पानी से खेलते हैं, एक-दूसरे के चेहरे पर 'गुलाल' मारते हैं। ये रंग प्राकृतिक अवयवों से बने होते हैं जिनमें नीम, कुमकुम, हल्दी और फूलों का अर्क शामिल होता है।
  • शाम को विशाल अलाव जलाया जाता है और पूजा के लिए गाय के गोबर के केक, लकड़ी, घी, दूध और नारियल को आग में फेंक दिया जाता है। इसे होलिका दहन के नाम से जाना जाता है।
  • लोग परिवारों और दोस्तों के साथ नाचते, गाते और दावत देते हैं, होली एक नए फसल के मौसम का प्रतीक भी है - रबी।
  • होली मेला' नामक बड़े मेले उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों और उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में आयोजित किए जाते हैं।
  • बंगाल में, होली को डोलजात्रा के रूप में मनाया जाता है, जिसके दौरान युवा लड़कियों को सफेद और केसरिया कपड़े पहनाए जाते हैं, जो मालाओं और फूलों से सजे होते हैं, पारंपरिक धुनों पर गाते हैं और नृत्य करते हैं। इस घटना के दौरान, 'अबीर' के रूप में जाना जाने वाला सुगंधित रंग पाउडर चारों ओर बिखरा हुआ है जो खुशी की अभिव्यक्ति है। इस अवसर पर विशेष मीठे व्यंजन जैसे मालपुआ, खीर और बसंती चंदन तैयार किए जाते हैं।
  • कर्नाटक में, होली में देशी नृत्य शैली 'बेदरा वेश' का प्रदर्शन किया जाता है।
  • तमिलनाडु में, इस दिन को पंगुनी उथ्रम के रूप में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन राम-सीता, शिव-पार्वती और मुरुगा-देवसेना का विवाह हुआ था। साथ ही महालक्ष्मी जयंती भी मनाई जाती है जो दूध के महासागर से महालक्ष्मी के अवतार का स्मरण करती है।

Important Timings On Holi

Sunrise
March 18, 2022 6:25 AM
Sunset
March 29, 2021 6:37 PM

Holika Dahan

2022 Mar 17 Thursday

holika-dahan-2021

Holi festival dates between 2018 & 2028

Year                                                      Date

2018                                           Friday, 2nd of March
2019                                           Thursday, 21st of March
2020                                           Tuesday, 10th of March
2021                                            Monday, 29th of March
2022                                            Friday, 18th of March
2023                                            Tuesday, 7th of March
2024                                            Monday, 25th of March
2025                                            Friday, 14th of March
2026                                            Tuesday, 3rd of March
2027                                            Monday, 22nd of March
2028                                            Saturday, 11th of March


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The Best Places to Celebrate Holi in India
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Wednesday, February 2, 2022

डेस्टिनेशन वेडिंग के लिए पहली पसंद बन रहा है त्रिजुगीनारायण मंदिर

 त्रियुगीनारायण मंदिर एक हिंदू मंदिर है जो भगवान विष्णु को समर्पित है। यह उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में मौजूद है।

व्युत्पत्ति "त्रिजुगी नारायण" शब्द तीन शब्दों "त्र" से बना है जिसका अर्थ है तीन, "युगी" काल का प्रतीक है - युग और " नारायण " विष्णु का दूसरा नाम है। तीर्थयात्रियों में आग करने के लिए लकड़ी की पेशकश की गई है हवन (चिमनी) -kund के बाद से तीन युगों - इसलिए जगह का नाम "Triyugi नारायण" दिया जाता है।

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 Trijugi Narayan wedding destination

आजकल देश विदेश में शादियों का डेस्टिनेशन वेडिंग का नया ट्रेंड चल रहा हैं। समय और लाइफस्टाइल बदलने के साथ अधिकांश जोडियां डेस्टिनेशन वेडिंग की ओर रूख कर रहे है। दरअसल डेस्टिनेशन वेंडिग में शादी के बंधन में बधने वाली जोडियां अपने पंसद की किसी खास जगह का चुनाव करके वहां अपने अनुसार शादी के बंधन में बधंते है। डेस्टिनेशन वेडिंग के लिए देशी व विदेशी जोडों की शिव व पार्वती त्रिजुगीनारायण मंदिर पहली पंसद बन रहा है।

त्रिजुगीनारायण मंदिर का महत्व

माना जाता है कि यह वही जगह है जहां साक्षात भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। उत्तराखंड का त्रिजुगीनारायण मंदिर ही वह पवित्र और विशेष पौराणिक मंदिर है। इस मंदिर के अंदर सदियो से अग्नि जल रही है और शिव पार्वती ने इसी पवित्र अंग्नि को साक्षी मानकर विवाह किया था। यह स्थान रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है।

त्रिजुगीनारायण मंदिर की कथा

ऐसा माना जाता है कि त्रिजुगीनारायण हिमावत की राजधानी थी। यहां शिव पार्वती के विवाह में भगवान विष्णु ने पार्वती के भाई के रूप में सभी रीतियों का पालन किया था। जबकि ब्रहमा जी इस विवाह में पुरोहित बने हुये थे और उस समय सभी संत मुनियों ने इस विवाह में भाग लिया था। विवाह स्थल के नियत स्थान को ब्रहमशिला कहा जाता है जो कि मंदिर के ठीक सामने स्थित है।

इस मंदिर के महात्म्य का वर्णन स्थल पुराण में भी मिलता है। विवाह से पहले सभी देवी देवताओं ने यहां स्नान किया था और इसलिए यहां तीन कुंड बने हुए है। जिन्हें रूद्रकुंड, बिष्णु कुंड और ब्रहा कुंड कहते है। और इन तीनों कुंडो का जल सरस्वती कुंड में आता है।

सरस्वती कुंड का निर्माण भगवान विष्णु की नासिका से हुआ माना जाता है और विवाह से पूर्व सभी देवताओं ने यहां स्नान किया और इसलिए यहां तीन कुंड रूद्रकुंड, विष्णुकुंड और ब्रहाकुंड कहते है।

ऐसी मान्यता है कि इन कुंड में स्नान से संतान हीनता से मुक्ति मिल जाती है। कहा जाता है कि इस मंदिर में यह ज्वाला तीन युगों से जल रही है। यह मंदिर भगवान शिव का समर्पित है। मंदिर में जल रही इस अंग्नि को साक्षी मानकर भगवान शिव और माता पार्वती ने विवाह किया था और तब से यह अग्नि प्रज्चलित हो रही है। त्रिजुगीनारायण मंदिर में मौजूद अखंड धुनी के चारों ओर भगवान शिव ने पार्वती संग फेरे लिये थे।

Timings of Triyuginarayan Temple

DARSHAN

OPEN TIME

CLOSE TIME

MORNING

7:00 AM

2:00 PM

EVENING

4:00 PM

8:00 PM

त्रियुगीनारायण मंदिर कैसे पहुंचे?

By Air : निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट (244 किमी) है जो देहरादून में स्थित है।

ट्रेन : निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश (मंदिर से 261 किमी) दूर है।

सड़क मार्ग : मंदिर सोनप्रयाग से 12 किमी दूर है जो सड़क मार्ग से अन्य स्थानों से अच्छी तरह से जुड़ता है। कोई भी ट्रेकिंग करके मंदिर तक पहुंच सकता है।

Triyuginarayan temple wedding cost

त्रियुगीनारायण में शादी की लागत आमतौर पर होटल, लॉज या फार्महाउस में कहीं और खर्च की तुलना में केवल 20-30 प्रतिशत है। आजकल देश विदेश में शादियों का डेस्टिनेशन वेडिंग का नया ट्रेंड चल रहा हैं। समय और लाइफस्टाइल बदलने के साथ अधिकांश जोडियां डेस्टिनेशन वेडिंग की ओर रूख कर रहे है।

Hotels | Triyuginarayan Temple

Kedar River Retreat 

 Gaurikund (Near Trijugi Nārāyan)

 Kedar River Retreat in Gaurikund has a garden and a casino. Among the facilities of this property are a restaurant, a 24-hour front desk and room service, along with free WiFi throughout the property.

The Sona Heli Resort 4 stars

 Hotel in Rudraprayāg

 Boasting a garden, The Sona Heli Resort is set in Rudraprayāg. Featuring a 24-hour front desk, this property also welcomes guests with a restaurant and a terrace. The hotel features family rooms.

Forest home stay

 Gupta Kāshi (Near Trijugi Nārāyan)

Set in Gupta Kāshi in the Uttarakhand region, Forest home stay has a balcony and mountain views. This homestay features a garden and free private parking.

GMVN Guptkashi 2 stars 

 Hotel in Gupta Kāshi

 Located in Gupta Kāshi, GMVN Guptkashi provides 2-star accommodation with private balconies. This 2-star hotel offers a 24-hour front desk and room service. As per my understanding- best property

Tuesday, February 1, 2022

उत्तराखंड में चुनावी रैलियों, रोड शो पर 11 तक रोक, चुनाव आयोग का फैसला

 उत्तराखंड में चुनावी रैलियों, रोड शो पर 11 तक रोक,आयोग ने जारी की नई गाइडलाइन : खुली जगहों पर एक हजार लोगों की जनसभा की अनुमति

निर्वाचन आयोग ने उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में प्रचार के चुनावी रैलियों और रोड शों पर 11 फरवरी तक रोक लगा दी है आयोग ने यह फैसला कोविड के संक्रमण को देखकर लिया हैं इसके साथ ही आयोग द्वारा चुनावी प्रचार हेतु कुछ रियायतें भी दी है। 

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सोमवार को आयोग ने समीक्षा बैठक कर इस रोक को 11 फरवरी तक बढा दिया है , तब तक प्रदेश में किसी भी राजनीतिक दल के रोड शो, पद यात्रा, साइकिल, बाइक, वाहन रैली, को अनुमति नही होगी। 

हालाकि आयोग ने राजनीतिक दलों को कुछ राहत भी दी है। इसके तहत हर जिले के डीएम की ओर से निर्धारित खुली जगह पर अब 1000 लोगों की क्षमता के साथ जनसभा की जा सकेगीं पहले यह आंकडा 500 लोगों का था। इसमें कोविड नियमों का पालन करना जरूरी होगीं 

आयोग ने यह भी तय किया है कि अब राजनीतिक दलो के कार्यकर्ता डोर टू डोर प्रचार में 10 के बजाय 20 लोगों को साथ लेकर जा सकेगें। इसी प्रकार इनडोर मीटिंग मे भी 300 के बजाय 500 लोगों या उस हॉल की कुल क्षमता के 50 प्रतिशत लोगों को ही शामिल किया जा सकेगा। सभी राजनीतिक दलो को यह जिम्मेदारी होगी कि वे अपने प्रत्याशियों एवं कार्यकर्ताओं से कोविड नियमों का पालन अवश्य कराये। 


Saturday, January 29, 2022

NeoCov नाम के वायरस ने दुनिया में दी दस्तक : क्या है आखिर NeoCov

नियोकोव (NeoCov) नाम के वायरस ने दुनिया में दी दस्तक, साउथ अफ्रीका में मिला कोरोना से भी खतरनाक वायरस

आज आपको एक ऐसे वायरस की बारे में बताने वाले है जिसकी मारक क्षमता 30 फीसदी से भी ज्यादा है। यदि यह तीन लोगों के संक्रमित करता है तो एक की जान जाना तय हैं आप इसी बात से इस खतरनाक वायरस का अंदाजा लगा सकते है।

आपको बता दे कि इस वायरस की खोज एक बार फिर के वुहान शहर के वैज्ञानिकों ने की है। आपको मामूल ही होगा वुहान शहर में सबसे पहले कोरोना वायरस की शुरूआत हुई थी, और इस बात की चर्चा पूरी दुनिया में हुई थी। वुहान के वैज्ञानिकों ने पाया कि दक्षिण अफ्रीका में यह वायरस मिला है। अब इस बात पर चर्चाए शुरू हो गयी है कि पेन्डेमिक एक एण्डेमिक बीमारी में बदलेगा या फिर हमें एक ऐसी बीमारी के दंस से जूझना पडेगा जो दुनिया में हाहाकार मचा सकता हैं।

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क्या है आखिर नियोकेव (NeoCov) वायरस

कोरोना से भी खतरनाक वायरस नियोकोव (NeoCov) ने दुनिया में दस्तक दे दी है। वुहान के वैज्ञानिको के अनुसार यह नया कोरोनावायरस साउथ अफ्रीका में मिला है। यह वायरस इतना खतरनाक है कि इससे संक्रमित तीन में से एक संक्रमित की मौत तय है। इस बात से आप अंदाजा लगा सकते है कि इस वायरस की मारक क्षमता या वायरूलेंस 33 फीसदी से भी अधिक है। रूसी न्यूज एंजेसी स्पूतनिक के हवाले से यह वायरस अन्य कोरोना वायरस के मुकाबले ज्यादा संक्रामक और मृत्यु दर जयादा है।

यह भी कहा जा रहा है कि NeoCov वायरस नया नही है यह साल 2012 और 2015 में पश्चिम एशिया में इसका प्रकोप देखा गया था। लेकिन अभी खतरनाक बात यह है कि दक्षिण अफ्रीका में वुहान के वैज्ञानिको द्वारा यह खोजा गया। इस बात से चिन्ता का सबब और बढ गया है क्योकि इसका संक्रमण दर ज्यादा है और मृत्यु दर भी ज्यादा है।

क्यों ज्यादा खतरनाक है यह वायरस:

यह वायरस SARC CoV-2 (सार्स कोरोना-2) वायरस की तरह है, और उसी का नया प्रारूप है। नियोकोव (NeoCov) वायरस चमगादड और पशुओं में पाया गया है। लेकिन चिन्ता की बात यह है कि इसमें एक भी म्यूटेशन होता है तो जाहिर तौर पर यह इंसान के सैल्स को संक्रमित करने की क्षमता रखता है। इसलिए यह कहा जा रहा है कि NeoCov (नियोकोव) और PDF -2180 CoV (पीडीएफ -2180 - कोव) इसांनो को संक्रमित कर सकता है। जो कि भविष्य में एक खतरनाक बीमारी का रूप ले सकता है।

 क्या कहतें है वैज्ञानिक?

इस वायरस के बारे में वैज्ञानिको को कहना है कि इस वायरस को इंसानों की सेल्स को संक्रमण के लिए सिर्फ एक म्यूटेशन की जरूरत है। अभी तक यह वायरस चमगादड और पशुओं में ही देखा गया है। नये वायरस नियोकोव से कही अधिक लोगो की मौत हो सकती है। रसियन वायरोलॉजिस्ट के अनुसार यह अभी इंसानो मे फैलने में सक्षम नही है।

नये प्रारूप को लेकर कई सवाल

इस नये कोरोना वायरस NeoCov (नियोकोव) की क्षमता और जोखिम को लेकर जांच जारी हैं, उसके बाद ही इसके बारे में विस्तार से जानकारी प्रकाशित की जायेगी। यहां हम आपकों यह भी बता दे कि दुनिया के 40 देशों में ओमीक्रॉन और सब वैरियेंट BA-2 (बीए.2) फैल चुका है। डेनमार्क के शोधकर्ताओं का कहना है कि ओमिक्रॉन के दो अलग अलग पीक आ सकते है।

Friday, January 28, 2022

जानिए कौन हैं 2022 में पद्मश्री पाने वाली बसंती बहन, जिनका जीवन पर्यावरण

वर्ष 2022 के पद्म पुरूस्कारों की घोषणा हो चुकी है जिसमें उत्तराखड से तीन महिलाओं समेत 34 महिलाओं को पद्मश्री से नवाजा गया है। उत्तराखंड से माधुरी बडथ्वाल, बंदना कटारिया, व बसंती देवी को पद्मश्री मिला है। आज हम आपकों समाज सेविका बसंती देवी जिन्हे सभी बसंती बहन के नाम से भी जाना जाता है। उनकें बारे में विस्तार से जानने के लिए इस पोस्ट को अन्त तक जरूर पढें।

basanti-devi-2022-padmashri

बंसती देवी मूल रूप से उत्तराखंड के पिथौरागढ जिले के बस्तडी सिंगाली गांव की रहने वाली है। और ये एक समाज सेविका है। पर्यावरण के लिए समर्पित बसंती देवी या बसंती दीदी को पद्मश्री पुरूस्कार 2022 देने की घोषणा की गई है।

कौन है पद्मश्री बंसती देवी/बसंती दीदी

बंसती देवी उत्तराखंड की एक प्रसिद्व समाज सेविका है। उन्होने उत्तराखंड के पर्यावरण संरक्षण, पेडों व नदी को बचाने के लिए अपना योगदान दिया है। बसंती देवी कौसानी स्थित लक्ष्मी आश्रम में रहती है। बसंती देवी ने पर्यावरण से लेकर समाज की कई कुरीतियों को दूर करने के लिए महिला समूहों का आहवान किया। एक तरफ तो उन्होनें कोसी नदी का अस्तित्व बचाने के लिए महिला समूहों के माध्यम से जंगल को बचाने की मुहिम शुरू की तो दूसरी और घरेलू हिसा और महिलाओं पर होने वाले प्रताडनाओं को रोकने के लिए जनजागरण किए।

यह बसंती देवी के प्रयास का ही फल है कि पंचायतों के सशक्तिकरण में उनके प्रयास का असर दिखा।

बसंती देवी का जीवन परिचय :

बसंती देवी या बसंती दीदी मूल रूप से पिथौरागढ के बस्तडी सिंगाली गांव की रहने वाली है। बसंती देवी की शिक्षा की बात करे तो शादी से पहले तक वह मात्र साक्षर थी। 12 साल की उम्र में उनका विवाह कर दिया गया था लेकिन कुछ समय बाद उनके पति का निधन हो गया, इसके बावजूद उन्होने हिम्मत नही हारी। उसके बाद बसंती देवी ने दूसरा विवाह नही किया। बाद में पिता का साथ मिला तो वापस मायके आई और पढाई में जुट गई और उन्होनें इंटर पास किया। 12वी करने के बाद बसंती गांधीवादी समाजसेविका राधा के संपर्क में आई और उनसे प्रभावित होकर कौसानी के लक्ष्मी आश्रम में ही आकर बस गई।

बसंती देवी ने महिलाओं के लिए संगठन बनायें एवं उन्हें समाज सेवा के पथ पर चलने के लिए प्रेरित किया और उन्होने अल्मोडा जिलें के धौलादेवी ब्लॉक में आयोजित बालबाडी कार्यक्रमों में शामिल होकर समाजसेवा शुरू की। बसंती देवी ने महिला समूहों का गठन कर उनको सामाजिक कार्यो में आगे लाई। साल 2003 में बसंती देवी ने कोसी घाटी के गांवों मे महिलाओं को संगठित करने का काम शुरू किया। तथा उन्होनें महिला सशक्तिकरण पर भी काफी बल दिया।

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बसंती देवी ने कौसानी से लोद तक पूरी घाटी में करीब 200 गांवो की महिलाओं का समूह बनाया। उन्होने महिला सशक्तिकरण पर बल देते हुए साल 2008 में महिलाओं की पंचायतों में स्थिति मजबूत करने पर काम किया। पंचायतों में महिलाओ को आरक्षण मिला तो उन्होने घरेलू हिंसा और पुरूषों की प्रताडना झेल रही महिलाओं की मुक्ति के लिए मुहिम शुरू की। 2014 में उन्होंने 51 गांवो की 150 महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में मदद की।

उन्होने महिलाओं को अपने जंगल के सरंक्षण के लिए समुदाय आधारित संगठन बनाने के लिए राजी किया।  उन्होने वन अधिकारियों के साथ समझौता किया, जिसके बाद न तो वन विभाग और न ग्रामीणों ने लकडी काटी। वन विभाग की सूखी लकडी पर ग्रामीणों के अधिकार को मान्यता मिली।

मार्च 2016 में राष्टपति प्रणव मुखर्जी ने राष्टपति भवन में बसंती देवी को नारी शक्ति पुरूस्कार से सम्मानित कियां। उन्हें पर्यावरण के लिए फेमिना वूमन जूरी अवार्ड 2017 दिया गया।